अष्टांग, जिसका अर्थ है "आठ अंग", योग के मूल स्वरूप को परिभाषित करता है। महर्षि पतंजलि योग को एक समग्र अभ्यास के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि सहित सम्पूर्ण कल्याण की दिशा में प्रयास करता है। यह केवल कुछ अंगों का समूह नहीं है, बल्कि एक ऐसा बहुआयामी और परस्पर जुड़ा हुआ मार्ग है, जहाँ हर आयाम को एक साथ अपनाना आवश्यक होता है। चित्तवृत्ति निरोध — अर्थात् विचारों की लहरों को शांत करना — मन को स्थिर करने की एक गहन समझ प्रदान करता है। जब हम मानसिक स्थिरता प्राप्त करते हैं, तब हम अपने उच्चतर स्वरूप (Higher Self) का अनुभव कर सकते हैं और परम सत्य (Absolute Reality) से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त होता है।
कर्म, वचन और विचारों में अहिंसा का पालन
नियत में सत्यता और उच्चतम सत्य में स्थित रहना
चोरी न करना
दैवी आचरण
अनावश्यक वस्तुओं का संचय न करना और दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना
चेतना की सर्वोच्च अवस्था
शरीर और मन की शुद्धता
स्वास्थ्य और मानसिक लाभ तो अनुभव किए ही जा सकते हैं, लेकिन अष्टांग योग के अभ्यास का परम उपहार है — समाधि में आत्म-साक्षात्कार।
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